आखिर इसरो के वैज्ञानिक चन्द्रयान-2 की लैंडिंग चंद्रमा के दक्षिणी धुव्र पर ही क्यों कराना चाहते हैं ?

22 जुलाई 2019 को इसरो ने चंद्रयान-2 को लांच कर के इतिहास रच दिया और इस बार चंद्रयान-2 की लैंडिंग चंद्रमा के दक्षिणी धुव्र पर होगी जो कि अन्तरिक्ष इतिहास में कोई भी देश नहीं कर पाया है . अब सोचने का विषय यह है कि जोखिम होने पर भी चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास ही चंद्रयान क्यों उतारा  जा रहा है और चांद में खोज के लिए जाने वाले मिशन के लिए ये ध्रुव महत्वपूर्ण क्यों बन गया हैं.

दरअसल, चंद्रमा का दक्षिणी धुव्र एक ऐसा क्षेत्र है जिसकी अभी तक जांच नहीं की गई और यहां कुछ नया  मिलने की संभावना भी ज्यादा  हैं. इस इलाके का अधिकतर हिस्सा छाया में रहता है और सूरज की किरणें न पड़ने से यहां बहुत ज़्यादा ठंड रहती है.

इसरो वैज्ञानिकों का अंदाज़ा है कि हमेशा छाया में रहने वाले इन क्षेत्रों में पानी और खनिज होने की संभावना हो सकती है. हाल में किए गए कुछ ऑर्बिट मिशन में भी इसकी पुष्टि हुई है.

पानी की मौजूदगी चांद के दक्षिणी धुव्र पर भविष्य में इंसान की उपस्थिति के लिए फायदेमंद हो सकती है. यहां की सतह की जांच ग्रह के निर्माण को और गहराई से समझने में भी मदद कर सकती है. साथ ही भविष्य के मिशनों के लिए संसाधन के रूप में इसके इस्तेमाल की क्षमता का पता चल सकता है.