जानें एक ऐसे मुस्लिम व्यक्ति के बारे में जिसने सर्वप्रथम तीन तलाक के खिलाफ चलाई थी मुहिम
तीन तलाक एक ऐसी कुप्रथा है जिसके कारण बहुत सी पीड़ित मुस्लिम महिलाएं समाज की मुख्य धारा से कट गयी है और यह एक ऐसी तलवार है जो हमेशा सभी मुस्लिम महिलाओं के सिर पर लटकी रहती है इस कुप्रथा को ख़त्म करने के लिए तत्कालीन सरकार ने तीन तलाक बिल को फिर से लोक सभा में पास करा लिया परन्तु बहुत सी पार्टियों के विरोध के कारण राज्य सभा में अभी भी पास कराना कठिन है लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि पचास साल पहले एक सेक्युलरिस्ट ने ट्रिपल तलाक को खत्म करने के लिये संघर्ष की शुरुआत की थी.
इस आंदोलनकारी का नाम था हमीद दलवाई जिसने 60 और 70 के दशक में तीन तलाक के खिलाफ आवाज़ बुलंद की थी. हमीद का जन्म 29 दिसंबर, 1932 को महाराष्ट्र के कोंकण में हुआ था. इनका ताल्लुक मध्यमवर्गीय परिवार से था, जो आम मुस्लिम परिवारों की तरह धार्मिक रुढियों से बंधा हुआ था. हमीद शुरू से ही सामाजिक कुरीतियों का विरोध करते थे.
जब पिता ने चौथी शादी की तो हमीद नाराज़ होकर मुंबई चले गए और समाज कल्याण से जुड़े आंदोलनों में हिस्सा लेने लगे. तीन तलाक मुद्दे से उस समय रुबरु हुए जब हमीद के एक दोस्त की बहन को 18 साल की उम्र में ही तलाक मिला था. बस यही से हमीद दलवाई ने तीन तलाक के खिलाफ जंग छेड़ दी.
1966 में मुंबई में विधानसभा के पास एक मार्च निकाला गया. महिलाओं की हाथों में ट्रिपल तलाक खत्म करने को लेकर बैनर और पर्चे थे जिसका नेतृत्व हमीद दलवाई कर रहे थे. ट्रिपल तलाक के खिलाफ सड़कों पर विरोध प्रदर्शन का ये पहला मामला था.इस मार्च में केवल 7 महिलाएं थीं, जो तीन तलाक की शिकार हुई थी. महज 7 महिलाओं के मोर्चे की ये खबरे जब अगले दिन अखबारों की सुर्खियां बनीं तो मुस्लिम समाज में खलबली मची. रातों रात हमीद दलवाई सुर्खियों में आ गए. हमीद ने मुस्लिम सत्यशोधक समाज की स्थापना की, जिसका मकसद था तीन तलाक को खत्म करके महिलाओं को समान अधिकार देना. हमीद ने सबसे पहले मुस्लिम महिलाओं को कानूनी जानकारी देनी शुरु की ताकि औरतें अपने हक़ को लेकर जागरुक बन सकें.
हमीद की अगुवाई में देश में पहली बार मुस्लिम महिलाओं ने बेखौफ होकर तीन तलाक के खिलाफ बोला. 1970 में मुस्लिम महिलाओं ने एक प्रेस कांफ्रेंस के जरिये तीन तलाक के खिलाफ आवाज उठाई.बौखलाए विरोधी भी हमीद की इस मुहिम के विरोध में उतर पड़े, इसके बाद हमीद के खिलाफ आंदोलन शुरु हो गए. उनकी सभाओं में पथराव तक किया जाने लगा साथ ही, कई बार उनपर जानलेवा हमला भी हुआ.
विरोध और प्रदर्शन के दौर में हमीद दलवाई की मुहिम रंग लाई और बात दिल्ली तक पहुंच गई. उस समय राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह, प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने भी इस मुहिम की तारीफ की. तत्कालीन विदेश मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने तो यहां तक कह दिया था कि हिंदू समाज को भी एक दलवाई चाहिए.
1977 में हमीद की किडनी की गंभीर बीमारी से मौत हो गई. हमीद दलवाई की मौत के बाद भी आंदोलन थमा नहीं. उनकी बीवी मेहरुनिसा ने मुस्लिम सत्यशोधक समाज के काम को आगे जारी रखा.