जानें इस्लाम में मुहर्रम का महत्व एवं धारणाएं

इमाम हुसैन और उनके अनुयायियों की शहादत की याद में मुहर्रम मनाया जाता है। इस माह में दस दिन का शोक मनाया जाता है। मुहर्रम महीने के 10 वें दिन को ‘आशुरा’ कहा जाता है । इस दिन हजरत रसूल के नवासे हजरत इमाम हुसैन, उनके बेटे और उनके परिवार वालों को कर्बला के मैदान में शहीद कर दिया गया था।

कर्बला की घटना काफी निंदनीय है। इस घटना के बाद सिर्फ उनके एक पुत्र हजरत इमाम जै़नुलआबेदीन जिंदा बचे जो कि बीमारी के कारण युद्ध मे भाग नहीं ले सके थे | काफी लोग अपने बच्चों का नाम हज़रत हुसैन और उनके शहीद साथियों के नाम पर रखते हैं।

इस माह भी रोजे रखे जाते है और कहा जाता है कि रमजान के अलावा सबसे उत्तम रोजे वही हैं, जो अल्लाह के महीने यानी मुहर्रम में रखे जाते है। नबी-ए-करीम हजरत के अनुसार जिस तरह नमाजों के बाद सबसे अहम नमाज तहज्जुद की है, उसी तरह रमजान के रोजों के बाद सबसे उत्तम रोजे मुहर्रम के हैं।

मुहर्रम की 9 तारीखों तक कि जाने वाली इबादतों का भी बड़ा महत्व बताया गया है। हजरत मुहम्मद के मित्र इब्ने अब्बास के मुताबिक हजरत ने कहा कि जिसने मुहर्रम की 9 तारीख का रोजा रखा, उसके दो साल के गुनाह माफ हो जाते हैं तथा मुहर्रम के एक रोजे का 30 रोजों के बराबर मिलता है। यह रोजे अनिवार्य नहीं हैं, लेकिन मुहर्रम के रोजों का बहुत अधिक महत्व है।