मिलिए भारत के विख्यात “रॉकेटमैन” इसरो के चेयरमैन डॉ. के.सिवन से जिन्होंने अन्तरिक्ष कार्यक्रम में भारत को बुलंदियों पर पहुचाया
पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम को हम सभी ‘मिसाइल मैन’के नाम से जानते हैं , ठीक उसी तरह डॉ. के. सिवन को ‘रॉकेटमैन’ के नाम से ख्याति मिली है। एक किसान परिवार में जन्म लेने के बाद सिवन ने अपनी मेहनत, लगन और काबिलियत के बलबूते पर भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्र इसरो के चेयरमैन पद तक का लंबा सफर तय किया है। आइये डॉ. के.सिवन के जीवन परिचय के बारे में जानते हैं :-
- डॉ. के. सिवन का जन्म 14 अप्रैल 1957 के दिन तमिलनाडु के तटीय जिले में स्थित नागरकोइल नामक छोटे से गांव में एक किसान परिवार हुआ।
- उनकी प्राथमिक शिक्षा सरकारी स्कूल में तमिल भाषा में हुई। बाद में अपनी प्रतिभा के बूते पर उन्होंने आईआईटी मद्रास में प्रवेश लिया, जहां से उन्होंने वर्ष 1980 में एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग में स्नातक की डिग्री ली।
- के. सिवन ने 1982 में उन्होंने आईआईएससी, बेंगलुरु से एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में मास्टर्स और फिर 2006 में आईआईटी बॉम्बे से एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में पीएचडी की डिग्री प्राप्त की।
- 1982 में वे इसरो में आए और पीएसएलवी परियोजना से जुड़ गए। उन्होंने एंड टू एंड मिशन प्लानिंग, मिशन डिजाइन, मिशन इंटीग्रेशन एंड एनालिसिस में भी अपना उल्लेखनीय योगदान दिया।
- सिवन को 6डी ट्रैजेक्टरी सिमुलेशन सॉफ्टवेयर के मुख्य विशेषज्ञ के रूप में नई पहचान मिली। इसकी सहायता से रॉकेट के लांच से पहले रास्ता निर्धारित किया जाता है। सिवन 2011 में जीएसएलवी परियोजना से जुड़ गए।
- सिवन ने 12 जनवरी 2015 को डॉ. एएस किरण का स्थान लिया। इससे पहले वे विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र के निदेशक थे।
- सिवन तब सुर्खियों में आए, जब भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्र इसरो ने पीएसएलवी सी-4 के जरिए एकसाथ 31 उपग्रह लांच किए। इनमें भारत के 3 और 28 अन्य 6 देशों के थे।
- इसके साथ ही इसरो का सैटेलाइट भेजने का शतक भी पूरा हो गया। सैटेलाइट भेजने का शतक पूरा करने के पीछे सिवन का ही तेज दिमाग था।
- सिवन को 1999 में डॉ. विक्रम साराभाई रिसर्च अवॉर्ड से सम्मानित किया गया।
- 2011 में डॉ. बीरेन रॉय स्पेस साइंस अवॉर्ड और अप्रैल 2014 में चेन्नई की सत्यभामा यूनिवर्सिटी से डॉक्टर ऑफ साइंस की उपाधि से वे सम्मानित हुए।
- 28 अप्रैल 2019 को पंजाब यूनिवर्सिटी के कॉन्वोकेशन में उपराष्ट्रपति वैंकया नायडु ने उन्हें ‘विज्ञान रत्न’ से सम्मानित किया।