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जानिए सभी धर्मो के अनुसार दीपावली का इतिहास

 

दीपावली एक ऐसा त्यौहार है जिसे कैसे धर्म को मानने वाले पूरे हर्षोल्लास से मानते हैँ. यह पर्व हिंदु बौद्ध जैन सिख धर्मों में मनाया जाता है. आइये इन धर्मों में इनकी ऐतिहासिकता  की जानकारी 
  बौद्ध धर्म
     ऐतिहासिक दृष्टि से देखा जाय तो ‘दीपावली’ को ‘दीपदानोत्सव’ नाम से जाना जाता था और यह वस्तुतः एक बौद्ध पर्व है जिसका प्राचीनतम वर्णन तृतीय शती ईसवी के उत्तर भारतीय बौद्ध ग्रन्थ ‘अशोकावदान’ तथा पांचवीं शती ईस्वी के सिंहली बौद्ध ग्रन्थ ‘महावंस’ में प्राप्त होता है। सांतवी शती में सम्राट हर्षवर्धन ने अपनी नृत्यनाटिका ‘नागानन्द’ में इस पर्व को ‘दीपप्रतिपदोत्सव’ कहा है।
कालान्तर में इस पर्व का वर्णन पूर्णतः परिवर्तित रूप में ‘पद्म पुराण’ तथा ‘स्कन्द पुराण’ में प्राप्त होता है जो कि सातवीं से बारहवीं शती ईसवी के मध्य की कृतियाँ हैं।
तृतीय शती ईसा पूर्व की सिंहली बौध्द ‘अट्ठकथाओं’ पर आधारित ‘महावंस’ पांचवीं शती ईस्वी में भिक्खु महाथेर महानाम द्वारा रचित महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है। इसके अनुसार बुद्धत्व की प्राप्ति के बाद तथागत बुद्ध अपने पिता शुद्धोदन के आग्रह पर पहली बार कार्तिक अमावस्या के दिन कपिलवस्तु पधारे थे। कपिलवस्तु नगरवासी अपने प्रिय राजकुमार, जो अब बुद्धत्व प्राप्त करके ‘सम्यक सम्बुद्ध’ बन चुका था, को देख भावविभोर हो उठे।
सभी ने बुद्ध से कल्याणकारी धम्म के मार्गों को जाना तथा बुद्धा की शरण में आ गए। रात्रि को बुद्ध के स्वागत में अमावस्या-रुपी अज्ञान के घनघोर अन्धकार तो प्रदीप-रुपी धम्म के प्रकाश से नष्ट करनें के सांकेतिक उपक्रम में नगरवासियों नें कपिलवस्तु को दीपों से सजाया था। किन्तु ‘दीपदानोत्सव’ को विधिवत रूप से प्रतिवर्ष मनाना 258 ईसा पूर्व से प्रारम्भ हुआ जब ‘देवनामप्रिय प्रियदर्शी’ सम्राट अशोक महान ने अपने सम्पूर्ण साम्राज्य, जो कि भारत के अलावा उसके बाहर वर्तमान अफ़ग़ानिस्तान और मध्य एशिया तक विस्तृत था, में बनवाए गए चौरासी हज़ार विहार, स्तूप और चैत्यों को दीपमाला एवं पुष्पमाला से अलंकृत करवाकर उनकी पूजा की थी।
‘थेरगाथा’ के अनुसार तथागत बुद्ध ने अपने जीवनकाल में बियासी हज़ार उपदेश दिये थे। अन्य दो हजार उपदेश बुद्ध के शिष्यों द्वारा बुद्ध के उपदेशों की व्याख्या स्वरुप दिए गए थे। इस प्रकार भिक्खु आनंद द्वारा संकलित प्रारम्भिक ‘धम्मपिटक’ (जो कालान्तर में ‘सुत्त’ तथा ‘अभिधम्म’ में विभाजित हुई) में धम्मसुत्तों की संख्या चौरासी हज़ार थी। अशोक महान ने उन्हीं चौरासी हज़ार बुद्धवचनॉ के प्रतिक रूप में चौरासी हज़ार विहार, स्तूप और चैत्यों का निर्माण करवाया था। पाटलिपुत्र का ‘अशोकाराम’ उन्होंने स्वयं अपने निर्देशन में बनवाया था। इस ऐतिहासिक तथ्य की पुष्टि ‘दिव्यावदान’ नामक ग्रन्थ के उपग्रन्थ ‘अशोकावदान’ से भी हो जाती है जो कि मथुरा के भिक्षुओं द्वारा द्वितीय शती ईस्वी में लिखित रचना है और जिसे तृतीय शती ईस्वी में फाहियान ने चीनी भाषा में अनूदित किया था।
हिन्दू-
  आयोध्या के राजा श्री राम की विजय – रामायण के अनुसार इस दिन जब श्री राम, सीताजी और भाई लक्ष्मण के साथ 14 वर्ष का वनवास पूर्ण कर अयोध्या वापिस लौटे थे। उनके स्वागत में पूरी अयोध्या को दीप जलाकर रौशन किया गया था।
जैन
   जैन समाज द्वारा दीपावली, महावीर स्वामी के निर्वाण दिवस के रूप में मनाई जाती है। महावीर स्वामी को इसी दिन को मोक्ष की प्राप्ति हुई थी। इसी दिन संध्याकाल में उनके प्रथम शिष्य गौतम गणधर को केवल ज्ञान की प्राप्ति हुई थी।
सिख
   सिक्खों धर्म – सिख धर्म के लिए भी दीपावली बहुत महत्वपूर्ण पर्व है। इस दिन को सिख धर्म के तीसरे गुरु अमरदास जी ने लाल पत्र दिवस के रूप में मनाया था जिसमें सभी श्रद्धालु गुरु से आशीर्वाद लेने पहुंचे थे। इसके अलावा सन् 1577 में अमृतसर के हरिमंदिर साहिब का शिलान्यास भी दीपावली के दिन ही किया गया था।