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अमेरिका ‘स्पेशल 301’ रिपोर्ट के आधार पर भारत के इस कानून में करना चाहता है बड़ा बदलाव

अमेरिकी सरकार के एक कानून ‘Omnibus Trade and Competitiveness Act of 1988’ के तहत जारी होने वाली ‘स्पेशल 301’ रिपोर्ट का है, जो अप्रैल 2019 में जारी की गई है. इसके तहत भारत को फिर से अमरीकी सरकार ने साल 2019 में ‘प्रायोरिटी वॉच लिस्ट’ में रखने का फैसला किया है. जिसके तहत दुनिया के उन देशों को सूचीबद्ध करना है, जिनसे अमेरिकी व्यापार को खतरा है. इसी रिपोर्ट के तहत इन देशों के कानून अमेरिका की सुविधानुसार बदले जाने पर भी चर्चा की जाती है. जाहिर है कि अमेरिकी प्रशासन इसके आधार पर काम करता है.

इस बार के ‘स्पेशल 301’ रिपोर्ट में भी भारत के पेटेंट कानून को निशाना बनाया गया है और उसमें सुधार करने के लिये कहा गया है. आज 21वीं सदी में भी स्वतंत्र भारत के कानून को बदलने के लिये अमेरिका दबाव बना रहा है. ‘स्पेशल 301’ की ताजा रिपोर्ट में कहा गया है कि भारतीय पेटेंट कानून के पेटेंट के मापदंड, अनिवार्य लाइसेंसिंग और डाटा एक्सक्लूसिविटी को अमेरिकी व्यापार को सुगम बनाने के लिये बदला जाना चाहिए, जबकि भारत का वर्तमान पेटेंट कानून पूरी तरह से ‘विश्व-व्यापार-संगठन’ के अनुसार बना है और अपने देश में दवाओं को कम दाम में उपलब्ध करवाने के लिए उसमें दिए गए लचीलेपन का पूरा लाभ उठाया गया है.

भारत के दवा बाजार पर अमेरिकी प्रशासन की टेढ़ी नजर होने के दो कारण हैं. पहला, भारत का विशाल दवा बाजार और भारत द्वारा दुनिया के करीब 165 छोटे-बड़े देशों में दवाओं का निर्यात किया जाना. गौरतलब है कि भारत सरकार के रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय के औषध विभाग की साल 2017-18 की सलाना रिपोर्ट के अनुसार साल 2016-17 के दौरान भारत का दवा बाजार 2 लाख 19 हजार 755 करोड़ रुपये का रहा है, जिसमें से 1 लाख 7 हजार 618 करोड़ रुपयों का निर्यात किया गया.

उल्लेखनीय है कि भारतीय दवा कंपनियां मोजाम्बिक, रवांडा, दक्षिण अफ्रीका और तंजानिया जैसे कम विकसित देशों को एड्स की दवा कम कीमत पर निर्यात करती हैं. भारतीय दवा कंपनियां अमेरिका जैसे विकसित देशों को भी कम कीमत में उच्च गुणवत्ता वाली दवाओं की सप्लाई करती हैं. जाहिर है कि इस कारण से अमेरिकी दवा कंपनियों को अपनी दवाओं के दाम कम करने पड़ते हैं. अब आपको स्पष्ट हो रहा होगा कि आखिर क्यों अमेरिकी प्रशासन के नेतृत्व में दुनियाभर के दवा क्षेत्र के निगम घराने भारत पर दबाव बना रहे हैं. विदेशी दवा कंपनियां चाहती हैं कि भारत की दवा कंपनियां आधुनिक जीवनरक्षक और आवश्यक दवाओं का निर्माण ही ना कर सकें. इसके लिए भारतीय कानून में तीन प्रमुख बदलाव लाने के लिए दबाव बनाया जा रहा है. ये तीनों हैं- भारतीय पेटेंट कानून की दो उपधारा पेटेंट के मापदंड, अनिवार्य लाइसेंसिंग और ड्रग एंड कास्मेटिक एक्ट की उपधारा डाटा एक्सक्लूसिव.