ऐसा कौन-सा प्रथम सूफ़ी साधक था, जिसने अपने आपको अनलहक घोषित किया था ?
मंसूर हल्लाज
मंसूर अल हल्लाज (858 – मार्च 26, 922) एक कवि और तसव्वुफ़ (सूफ़ी) के प्रवर्तक विचारकों में से एक था जिसको सन ९२२ में अब्बासी ख़लीफ़ा अल मुक़्तदर के आदेश पर बहुत पड़ताल करने के बाद फ़ांसी पर लटका दिया गया था। इसको अन अल हक़्क़ (मैं सच हूँ) के नारे के लिए भी जाना जाता है जो भारतीय अद्वैत सिद्धांत के अहं ब्रह्मास्मि के बहुत क़रीब है।
मनसूर अल हल्लाज का जन्म बैज़ा के निकट तूर (फारस) में हुआ। ये पारसी से मुसलमान बना था । अरबी में हल्लाज का अर्थ धुनिया होता है – रूई को धुनने वाला। इसने कई यात्राएं कीं – ३ बार मक्का की यात्रा की। ख़ुरासान, फ़ारस और मध्य एशिया के अनेक भागों तथा भारत की भी यात्रा की। सूफ़ी मत के अनलहक (अहं ब्रह्मास्मि) का प्रतिपादन कर, इसने उसे अद्वैत पर आधारित कर दिया।
यह हुलूल अथवा प्रियतम में तल्लीन हो जाने का समर्थक था। सर्वत्र प्रेम के सिद्धांत में मस्त होकर इबलीस (शैतान) को भी ईश्वर का सच्चा भक्त मानता था। समकालीन आलिमों एवं राजनीतिज्ञों ने इस भाव का घोर विरोध कर 26 मार्च 922 ईo को बगदाद में आठ वर्ष बंदीगृह में रखने के उपरांत हत्या करा दी।
मूल इस्लामी शिक्षाओं को चुनौती देने की ख़ातिर इनको इस्लाम का विरोधी मान लिया गया। लोग कहते कि वह अपने को ईश्वर का रूप समझता हैं, पैज़म्बर मुहम्मद का अपमान करता हैं और अपने शिष्यों को नूह, ईसा आदि नाम देता हैं। इसके बाद उसको आठ साल जेल में रखा गया। तत्पश्चात भी जब इसके विचार नहीं बदले तो इसे फ़ाँसी दे दी गई।