मोदी सरकार के लिए वन नेशन वन इलैक्शन पर सभी पार्टियों को एकमत करना कठिन
वन नेशन वन इलैक्शन के मिशन हेतु देश में लोकसभा और सभी विधानसभाओं के चुनाव एक साथ करवाने को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने समिति बनाने की घोषणा कर दी है लेकिन लोकसभा चुनाव और विधानसभा चुनाव करवाना इतना आसान नहीं है क्योंकि इस काम के लिए सभी राजनीतिक पार्टियों की सहमति बनाने की जरूरत पड़ेगी और कानून में भी संशोधन करना पड़ेगा। भाजपा शासित राज्यों के चुनाव लोकसभा चुनाव के साथ करवाने में कोई परेशानी नहीं आएगी क्योंकि भाजपा अपने राज्यों के मुख्यमंत्रियों के जरिए विधानसभाएं भंग करवा सकती है लेकिन कई ऐसे राज्य हैं जहां गैर-भाजपा सरकारें हैं।वहां पर ऐसा कर पाना आसान नहीं होगा ।
राज्यों में विधानसभा समय से पहले भंग करने के लिए क़ानून में परिवर्तन करना पड़ेगा । संविधान की धारा 83 संसद (लोकसभा व राज्यसभा) की अवधि को परिभाषित करती है और इस धारा के तहत लोकसभा की अवधि 5 वर्ष निर्धारित की गई है। इसी प्रकार संविधान की धारा 172 (1) के तहत राज्यों के लिए 5 साल की अवधि निर्धारित की गई है। इसका मतलब है कि संविधान के मुताबिक राज्य सरकारों की अवधि नहीं बढ़ाई जा सकती जबकि एक साथ चुनाव करवाने के लिए या तो अवधि बढ़ानी पड़ेगी या कुछ राज्यों की विधानसभाओं की अवधि कम करनी पड़ेगी।
विपक्षी पार्टियों का सोचना है कि एक साथ चुनाव होने से छोटी पार्टियों को नुकसान हो सकता है और सत्ताधारी पार्टी को इसका फायदा मिल सकता है पर मोदी सरकार का कहना कि इससे पैसा और समय दोनों की बचत होगी जिसका उपयोग देश की तरक्की में किया जा सकता है ।