भारत सरकार का इलेक्ट्रिक वाहनों के प्रयोग पर जोर,प्रदूषण को कम करने में मिलेगी मदद
स्वच्छ ऊर्जा नीति को को प्राथमिकता देते हुए भारत इलेक्ट्रिक वाहनों के इस्तेमाल पर ज़ोर दे रहा है. परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने पिछली सरकार में ऑटोमोबाइल सेक्टर को एक बड़ा झटका दिया था .नितिन गडगरी ने घोषणा की थी कि उनका इरादा है कि 2030 तक भारत में सभी गाड़ियों को इलेक्ट्रिक कर दिया जाए. एक बिज़नेस सेमिनार में नितिन गडकरी ने कहा, “मैं बिल्कुल ऐसा ही करने वाला हूं चाहे आप लोग इसे पसंद करें या न करें. मैं इसके लिए आपसे पूछने वाला नहीं हूं.
सरकार के दो प्रमुख उद्देश्य हैं प्रदूषण को नियंत्रित करना और इस उभरते हुए उद्योग में सबसे आगे निकलना. ब्रिटेन और फ्रांस भी 2040 तक इंजन वाली गाड़ियों को पूरी तरह से हटाना चाहते हैं. लेकिन उद्योगों के दबाव और कई नौकरियों के जाने के डर से सरकार ने अपने निर्णय में कुछ परिवर्तन किया है. अब गडकरी और बीजेपी का लक्ष्य अब 100 प्रतिशत से घटकर 30 प्रतिशत इलेक्ट्रिक यात्री कारों का हो गया है.
नए प्रस्ताव के अनुसार 2023 तक देश भर में इलेक्ट्रिक थ्री व्हलीर्स का परिचालन होना है और 2025 तक इलेक्ट्रिक टू व्हीलर्स का. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इस महीने की शुरुआत में अपने बजट भाषण में कहा था कि भारत इलेक्ट्रिक वाहनों के विनिर्माण का वैश्विक केंद्र बनना चाहता है.लेकिन इलेक्ट्रिक वाहनों का निर्माण और उनसे बाज़ार में लाभ पैदा करना भारत के लिए एक बड़ी चुनौती होगी. भारत के पास न तो इसके लिए कोई बुनियादी ढांचा है और न ही उतना पैसा जितना इलेक्ट्रिक क्षेत्र में आज सबसे आगे खड़े चीन के पास है.
चीन इलेक्ट्रिक वाहनों का विश्व का सबसे बड़ा बाज़ार है. ये इलेक्ट्रिक वाहनों को चार्ज करने के स्टेशन का बड़ा क्षेत्र है. इसके अलावा विश्व का सबसे बड़ा बैटरी निर्माता है. भारत कुछ चीज़ें चीन से सीख सकता है. सरकार ने वहां के सबसे भीड़ भाड़ वाले और प्रदूषित शहरों में पेट्रोल डीज़ल से चलने वाले वाहनों की बिक्री पर बहुत हद तक रोक लगा दी.
पहला, भारत में सरकारी कार्यालयों और मॉल में चार्जिंग स्टेशन बनाए जा रहे हैं. सरकारी स्वामित्व वाली बिजली कंपनियां जैसे भारत हेवी इलेक्ट्रिकल्स और एनर्जी एफिशिएंसी सर्विसेस ने जल्द ही चार्जिंग स्टेशन शुरू करने की योजना बनाई है. अगले दो सालों में 10,000 स्टेशन बनाए जाएंगे.