क्या आप जानते हैं कि बाँस की लकड़ी को क्यों नहीं जलाया जाता है ?
हम अक्सर शुभ और अशुभ कामों के लिए विभिन्न प्रकार के लकड़ियों को जलाने में प्रयोग करते है लेकिन क्या आपने कभी किसी काम के दौरान बाँस की लकड़ी को जलता हुआ देखा है |
भारतीय संस्कृति , परंपरा और धार्मिक महत्व के अनुसार हमारे शास्त्रों में बाँस की लकड़ी को जलाना वर्जित माना गया है | यहाँ तक की हम अर्थी के लिए बाँस की लकड़ी का उपयोग तो करते है लेकिन उसे चिता में जलाते नहीं हैं |हिन्दू धर्मानुसार बाँस जलाने से पितृ दोष लगता है वहीं जन्म के समय जो नाल माता और शिशु को जोड़ के रखती है उसे भी बाँस के वृक्षो के बीच मे गाड़ते है ताकि वंश सदैव बढ़ता रहे |
बाँस में लेड व हेवी मेटल प्रचुर मात्रा में पाई जाती है .लेड जलने पर लेड ऑक्साइड बनाता है जो कि एक खतरनाक न्यूरो टॉक्सिक है हेवी मेटल भी जलने पर ऑक्साइड्स बनाते हैं | लेकिन जिस बाँस की लकड़ी को जलाना शास्त्रों में वर्जित है यहाँ तक कि चिता मे भी नही जला सकते |
उस बाँस की लकड़ी को हम लोग रोज़ अगरबत्ती में जलाते हैं | अगरबत्ती के जलने से उतपन्न हुई सुगन्ध के प्रसार के लिए फेथलेट नाम के विशिष्ट केमिकल का प्रयोग किया जाता है | यह एक फेथलिक एसिड का ईस्टर होता है जो कि श्वांस के साथ शरीर में प्रवेश करता है | इस प्रकार अगरबत्ती की तथा कथित सुगन्ध न्यूरोटॉक्सिक एवम हेप्टोटोक्सिक को भी स्वांस के साथ शरीर मे पहुंचाती है |