क्या कारण है कि मोदी ने अपने पहले विदेश दौरे के लिए मालदीव को चुना ?
भौगोलिक और जनसंख्या की नज़र से मालदीव एशिया का सबसे छोटा देश है.
हालाँकि देश की कुल आबादी लगभग पाँच लाख है लेकिन आमदनी का असल ज़रिया पर्यटन हैं क्योंकि सालाना दस लाख से भी ज़्यादा पर्यटक यहाँ पहुँचते हैं.
मालदीव में भारतीय मूल के लोगों की संख्या तीस हज़ार के आस-पास है लेकिन सामरिक दृष्टि से भारत के लिए मालदीव बहुत क़ीमती है.
लगातार दूसरी बार आम चुनाव जीतने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी पहली आधिकारिक विदेश यात्रा के लिए मालदीव को चुना है. मालदीव की दक्षिण एशिया और अरब सागर में जो सामरिक लोकेशन है वो भारत के लिए अब पहले से कहीं ज़्यादा अहम है.
भारतीय राजदूत संजय सुधीर ने कहा, “मालदीव हमारी ‘नेबरहुड फ़र्स्ट‘ पॉलिसी का बड़ा हिस्सा है. हमारा जितना भी तेल और गैस का एक्सपोर्ट मध्य-पूर्व से आता है उसका बहुत बड़ा हिस्सा ए डिग्री चैनल, यानी मालदीव के बग़ल से होकर गुज़रता है. साथ ही, बहुत ज़रूरी है भारतीय महासागर के इस इलाक़े में पीस-स्टेबिलिटी रहे. उसके साथ-साथ इंडिया मालदीव में एक भरोसेबंद डिवेलपमेंट पार्टनर की भूमिका भी निभाता है.”
मालदीव को प्रधानमंत्री की पहली विदेश यात्रा के लिए चुने जाने के पीछे चीन भी एक बड़ा कारण बताया जाता है. चीन ने पिछले एक दशक से हिंद महासागर में अपना वर्चस्व बढ़ने की मुहिम तेज़ कर रखी है. श्रीलंका को इस कड़ी का पहला हिस्सा बताया जाता है जिसके बाद उसका ध्यान मालदीव पर भी रहा है. व्यापार, आर्थिक मदद और इन्फ्रास्ट्रक्चर प्लान के ज़रिए चीन इन देशों में तेज़ी से अपना पांव ज़माने में कुछ हद तक कामयाब भी रहा है. मालदीव पर भारत का प्रभाव कुछ वर्षों के लिए थोड़ा धीमा पड़ गया था. अगर सभी सार्क देशों की बात की जाए तो पिछले कई वर्षों में पाकिस्तान के बाद मालदीव ही वो देश था जिसके साथ भारत के संबंध ख़ासे खराब हो गए थे. इसलिए ये यात्रा एकदम सही समय पर हो रही है.
मालदीव में 2018 के चुनावों में सत्ता परिवर्तन हुआ और भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नए राष्ट्रपति इब्राहिम मोहम्मद सोलिह के शपथ ग्रहण में आकर एक कूटनीतिक संदेश दिया.
इसके जवाब में राष्ट्रपति सोलिह ने पिछले साल के दिसंबर महीने में भारत की आधिकारिक यात्रा की जिसमें बड़े व्यापारिक समझौते भी हुए. उस यात्रा के समापन के पहले भारत की चैन की साँस को प्रधानमंत्री मोदी के इन शब्दों से समझा जा सकता है, “आपकी इस यात्रा से आपसी भरोसे और दोस्ती की झलक मिलती है जिन पर भारत-मालदीव संबंध आधारित हैं”.
भारतीय विदेश सचिव विजय गोखले ने भी इस बात पर ज़ोर दिया था कि, “प्रधानमंत्री की यात्रा के दौरान विकास और सुरक्षा संबंधी कुछ अहम समझौते होंगे जो दोनों देशों के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण साबित होंगे”.